****** जीवन का सफर******
ट्रैफिक से बचने के लिए मेट्रो का सहारा लेकर दोपहर में 1.20 मिनट पर मैं नई दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर पहुंच चुका था, ट्रेन तय समय से 10 मिनट पहले पहुंच चुकी थी जिसका स्टॉपेज 15 मिनट का था,प्लेटफार्म पर नजर आ रहे कोच के नंबर देखकर इंजन की दिशा में A1 कोच देखकर वहां जा पहुंचा,ट्रेन दिल्ली से इंदौर के लिए थी, दिल्ली से शिवपुरी जाने के लिए मेरा उसी ट्रेन में रिजर्वेशन था।
A1 कोच के बाहर सबसे ज्यादा भीड़ थी वहां से निकलने वाले सभी एक ही ग्रुप या परिवार के थे जिनके पास सामग्री ज्यादा थी और लोग भी ज्यादा थे, जिस वजह से उतरने में समय लग रहा था, यह देखकर कोच के बाहर खड़ी दो महिलाएं(जिनकी उम्र लगभग 55 और 35 रही होगी) उन सभी पर चिल्लाने लगी और कहने लगी "सफर करने की तमीज नहीं है,जानवरों को तरह भरे हैं इतना लगेज लेकर जाता है क्या कोई ट्रेन में?",
वह सभी उस महिला की बात सुनते रहे और अपना लगेज उतारते रहे,उनका चुप रहकर सामान उतारने का अंदाज बता रहा था कि वह कोई गंभीर व्यक्ति थे।
मैं भी वहीं था, मैने उन महिलाओं से कहा "कोई बात नहीं यहां ट्रेन 15 मिनट रुकेगी,शायद यह सब कहीं किसी कार्यक्रम में गए और थके हुए होंगे, थोड़ी देर इंतजार कर लो, जब अंदर से लोग निकल जायेंगे तभी हमारे लिए जगह होगी"
वह मेरे तरफ गुस्से में देखने के बाद भी बड़बड़ाती रहीं,थोड़ी देर बाद वह अंदर पहुंची,मेरा रिजर्वेशन भी उसी कोच में था इसलिए मैं उनके पीछे पीछे था वह जाकर सीट नंबर 21 और 25 पर लोअर बर्थ पर बैठ गईं।
मैं उनके हाव भाव देखकर अपनी सीट जो अपर बर्थ 26 नंबर थी, पर चुपचाप जाकर बैठ गया ,मैने उन्हें देखकर नीचे बैठना भी उचित नहीं समझा।
थोड़ी देर बाद बातों में पता चला उनकी एक सीट नीचे की थी और दूसरी सामने की तरफ ऊपर बाली जिसे देखकर वह कहने लगीं "जिसकी यह नीचे की सीट होगी उसे ऊपर भेज देंगे,पता नहीं रेलवे क्या हिसाब से सीट देता है"
मैने फिर कहा "हो सकता है जिसे नीचे की सीट मिली हो वह आपसे भी ज्यादा उम्र की हों और कोई महिला ही हों"
वह फिर मेरी तरफ देखकर चुप हो गई
थोड़ी देर बाद एक अन्य महिला वहां आकर बैठ गई जिसकी वह लोअर बर्थ थी, उससे वह दोनों महिलाऐं बात करने लगीं, बातों में पता चला वह मां- बेटी थीं जो घूमने जा रही थीं, थोड़ी देर में उन तीनों की ठीक ठाक बात होने लगी, उन मां- बेटी ने खाने का डिब्बा निकाला और उस बाद में आई महिला को खाना ऑफर किया,थोड़ी देर मना करने के बाद उसने उनका ऑफर स्वीकार कर लिया और खाना खाकर उन महिला के साथ जो उनकी बेटी थी उसकी तरफ देखकर कहा "दीदी खाना तो बहुत अच्छा बना है आपने ही बनाया है क्या?"
वह महिला जो बेटी थी जिसकी उम्र लगभग 35,36 रही होगी तपाक से बोली
"मैं तो सोने और ऑफिस जाने के अलावा कोई काम नहीं करती,यह तो मेरी मम्मी ने बनाया है,हां खाना मुझे घर का ही पसंद है इसलिए मां के हाथ का ही खाना खाती हूं"
यह सुन उनकी मां बोली "हां मैं ही बनाती हूं,मेरी बेटी तो नाइट सिफ्ट में ड्यूटी करती है इसके लिए मैं ही पूरा ख्याल रखती हूं, पिछले 10 साल से रोज टिपिन बनाकर भेजती हूं,इसके पति के लिए भी मैं खाना भेजती थी, लेकिन इतना बेकार था वो कि उसने इसे छोड़ दिया, आजकल कैसे कैसे लोग हैं दुनिया में"
थोड़ी देर खाना खाते हुए वह फिर बोली "सिर्फ लड़के ही नहीं आजकल लड़कियां भी अच्छी नहीं मिलती, मेरे बेटे के लिए कई साल से लड़की खोज रहे हैं,"
यह सुन उनकी बेटी बोल बैठी "हां पिछले 5 साल से कई लड़की रिजेक्ट कर चुके, किसी में कुछ कमी मिलती है किसी में कुछ,कोई ढंग की तो मिलती ही नहीं है"
यह सुन मैंने व्यंग्य में कहा "दीदी आप कितनी खुशनसीब हैं जो आपको इतनी अच्छी मां मिली आपकी अगली पीढ़ी को ऐसी मां नसीब नहीं होगी,"
वह भी बोली "हां इस मामले में मैं बहुत लकी हूं"
उनकी मां मेरा व्यंग्य समझ चुकी थी उन्होंने मुझे घूर कर देखा और चुपचाप बैठी रही
आखिर में मैंने मोबाइल का हेडफोन कनेक्ट किया,जिससे उनकी आवाज आना बंद हो गई, थोड़ी देर बाद देखा वह दोनों नीचे की सीट पर लेटी थीं, और दूसरी महिला जिसकी लोअर बर्थ थी उसको ऊपर की सीट पर भेज दिया था।
धीमी धीमी आवाज में
गुलाम अली की आवाज में मुझे गजल के शब्द सुनाई देने लगे
"
हर तरफ़ धुंध है, जुगनू है, न चराग कोई
कौन पहचानेगा बस्ती में अगर जाऊँगा
ज़िन्दगी मैं भी मुसाफिर हूँ तेरी कश्ती का
तू जहाँ मुझसे कहेगी मैं उतर जाऊँग
"
मनीष भार्गव