मैं कोईअलादीन का चिराग नही
"बेटा ,तुम्हें किसी चीज की कमी है क्या ? यदि ऐसा कुछ है तो बेझिझक मुझसे बोल सकती हो." कादम्बिनी जी अपनी बहू रोमा से बोली जिसकी शादी उनके बेटे रजत से सालभर पहले ही हुई थी.कई दिनों से वो रोम को उदास देख रही थी.जबकि शादी के शुरुआती महीनों में वो बहुत खुश रहती थी.
"नही मम्मी जी.ऐसी कोई बात नही है."
"बेटा कोई बात तो जरूर है.आजकल रजत भी उखड़ा उखड़ा रहता है.तुम मुझे बता सकती हो शायद मैं कोई हल निकाल पाऊं." प्यार से रोमा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली.
कादम्बिनी जी के प्यार भरे स्पर्श से रोमा पिघल गई "मम्मी जी रजत पहले मेरी हर बात मानते थे. मेरे साथ घूमने जाते थे. डिनर पर ले जाते थे मुझे कोई चीज पसंद आ जाती तो तुरंत खरीद देते थे पर अब हर बात के लिए मना कर देते है कहते है मेरे पास हर महीने फालतू पैसे और समय नही है.क्या शादी के बाद प्यार और परवाह कुछ समय तक ही रहती है."
"ऐसा नही है बेटा.रजत तुमसे बहुत प्यार करता है फिर भी मैं उसे समझाऊंगी.तुम चिंता मत करो." संतावना देते हुए बोली.
शाम को रजत के ऑफिस आने के बाद कादम्बिनी जी ने रजत को अपने कमरे में बुलाया.
"बेटा अभी तो तुम्हारी गृहस्थी ढ़ंग से शुरू भी नही हुई और अभी से मन मुटाव होने लगा."
"माँ मैं कोई अलादीन का चिराग नही हूँ.जो उसकी हर मांग पूरी कर पाऊं."
"ऐसा क्यों बोल रहा है ?"
"माँ हर महीने उसे बाहर घूमने जाना होता है. चलो घूम भी ले पर वो शॉपिंग की और बाहर ही डिनर की जिद्द करने लगती है. पहले पहले मुझे लगा कि नई नई शादी है कोई बात नही.लेकिन अब भी वो चाहती है कि मैं उसकी हर इच्छा पूरी करूँ.आप ही बताओ. माँ मैं हर महीने इतना खर्च नही कर सकता.शादी में पहले ही बहुत खर्च हो गया.कल को बच्चे होगें उनकी पढ़ाई लिखाई और भविष्य के लिए भी पैसे चाहिए और कभी कोई इमरजेंसी आ गई तो क्या करेंगे.ऐसे ही बिन सोचे समझे रोम खर्च करती रही तो जो थोड़ी बचत है वो भी नही रहेगी."
"तुम दोनों की सोच गलत नही है बस नजरिया गलत है.उसकी अभी अभी शादी हुई है और हर लड़की का अरमान होता है कि वो अपने पति के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताये.उसका जीवनसाथी उसकी सब ख्वाहिशें पूरी करे."
"माँ मैं भी उसके साथ समय बिताना चाहता हूँ.लेकिन मैं हर महीने हजारों की शॉपिंग नही करा सकता."
"बेटा इसमें कुछ गलती तेरी भी है.रोमा को आये सालभर होने वाला है.तुमने अभी तक घर की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर जो ले रखी ."
"क्या मतलब ??"
"तू घर का राशन,बिजली का बिल,गैस का बिल और दूसरे खर्चे खुद भरता है.रोमा को पता ही नही चलता होगा कि कितना और कहाँ खर्च हो रहा है.अब समय आ गया है कि तू ये जिम्मेदारी रोमा को दे दे.जब वो सब खर्च देखेगी समझेगी तो समझ जायेगी कि तुम गलत नही हो.बेटा हर बात को गुस्से या कटु वचनों से नही सुलझाया जा सकता उसके लिए धैर्य की जरूरत होती है फिर इसमें रोमा की भी गलती नही है. उसका मायका संपन्न है.उसकी हर इच्छा उसके पापा पूरी कर देते थे. लेकिन अब वो तुम्हारी पत्नी और इस घर की बहू है इसलिए उसे इस घर के हिसाब से ढलने में थोड़ा वक्त तो लगेगा.अगर तुम दोनों समझदारी से काम लोगे तो मुश्किल हल हो जायेगी."
"आप ठीक कह रही हो माँ.रोमा बुरी नही है बस उसे समझाने की जरूरत है.अब से मैं अपनी तनख्वाह उसी के हाथ में दूंगा. तब शायद वो मेरी मजबूरी समझ पाये."
"जरूर समझेगी,पर इसका मतलब ये नही है कि तू मेरी बहू को बाहर घूमाने ही नही ले जाये.अगर ऐसा हुआ तो सबसे पहले मैं ही तेरे कान खींचूगी." कान पकड़ते हुए कादम्बिनी जी बोली.
"नही..नही मैं एक साथ दो औरतों से पंगा नही ले सकता." हँसते हुए रजत बोला.