"दोहरा आचरण"••••••
रसोईघर में जाकर देखा तो कढ़ाही में एक आलू और जरा सा रस था , होट केस में एक ही रोटी थी वो तली में भींगी चिपचपी , भूखी वसुधा अपने ही घर में ऐसा दृश्य देख रो पड़ी और तुरंत से दो रोटी बनाती है और बचे खुचे सब्जी में डूबो कर खा लेती है । अभी तीनदिन पहले उसने एक बेटी सामान्यतः जन्मा था और ससुराल में सास ननद के होते उसको ना खाना मिलता ना ही कोई उसके बच्चे को पकड़ता । शायद ससुराल में सास और ननद वहीं करती हैं जिसे वो भुगत चुकी हैं और पति वैभव को समय कहाँ कि वो वसुधा की मदद करे , बिचारा केवल एक सेब खाकर ऑफिस चला जाता और रात के नौ बजे आता था । उस समय दोंनो माँ बेटी खूब अच्छे से वैभव को खाना परोसती और यह जाहिर करतीं कि कितनी अच्छी हैं वो लोग! लेकिन वसुधा को दाने दाने के लिए तरसातीं थीं । वैभव के खाने के उपरांत उसके हाथोंहाथ खाना वसुधा को भिजवा दिया जाता , वैभव यही सोचता कि उसकी माँबहन पत्नी का बहुत ख्याल रख रही हैं लेकिन बिचारा अनभिज्ञ है कि दोंनो दिखावापरस्त हैं । हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और , लेकिन अंत में भगवान भी सबक दे ही देते हैं ऐसे दोगले चरित्र वाले को ।
आज रविवार है इसलिए वैभव घर में ही है और वसुधा को बच्चा हुए बीस दिन बीत चुके हैं । किचन में दोंनो खाना बना रही माँ बेटी मन ही मन सोच रही कि वैभव के सामने उसे खाना पानी तो देना ही पड़ेगा , महारानी के आज बीस दिन हो चुके हैं और अभी भी प्रसुता वाला नखरे उठा रही है ।
देख ना माँ ! वसुधा के नखरे , अभी तक कमरे में पड़ी है , हमलोगों के मदद के लिए झाँकने भी नहीं आती ? भाई भी इसको सर पर चढ़ा रखा है , हूँ हहहह! ह क्या कर सकते हैं अब सवा महीने तक तो झेलने ही पड़ेंगे , फिर महारानी जी अपना किचन सँभालेगी, और नहीं क्या ! वैभव की माँ भी तमक कर बोली । माँबेटी की कानाफूसी जारी है और बिचारी वसुधा को बस रविवार को ही वैभव के घर पर रहने से खाना मिल जाता है , शेष दिन वो खुद ही खाना बनाकर खा लेती ।
सवा महीने बीत गए, अब वसुधा ने रसोईघर सँभाल लिया है , बेटी को देखने के लिए एक लड़की को रखा है ताकि घर के काम में सहायक हो । ननद अपने ससुराल चली गई है , बस घर में सास और वसुधा ही हैं । रोज समय पर सास को नाश्ता, खाना चाय पानी देती , सास का मन अब दुखी है कि जब बहु को मेरी जरूरत थी तब तो उसको भूखे मार रही थी और अब यह सबकुछ भूलकर मेरा ख्याल रख रही है , मन ही मन उदास रहती और फोन पर बेटी से कहती कि पापी हैं वो ।
लेकिन अब क्या फायदा ! वसुधा को अब क्या करना है , वो सब भूल चुकी है ।