पहले चाय की दुकान पे सिर्फ 'चाय' बिकती थी वो भी एक नम्बर क्वालिटी की।
फिर बिस्कुट,मठरी, टोस्ट भी बिकने लगे,
फिर धीरे-धीरे सिगरेट भी बिकने लगी,
फिर किसी ने गुटका बेचने की भी सलाह दे डाली,
अब एक काऊंटर कोल्ड ड्रिंक का भी लग गया,
एक दिन एक महोदय,जो परिवार सहित कहीं जा रहे थे,उन्होंने कार कोल्ड ड्रिंक लेने लिए रूकवा दी और सलाह ठोक दी कि भाई बच्चों के लिए चिप्स,नमकीन, कुरकुरे के पैकेट भी लटका लो...इस सलाह पर भी अमल हुआ।
एक साहब ने कहा कि सिर दर्द,पेट दर्द की गोलियाँ भी रखलो।इस पर भी अमल किया गया।गोलियां भी बिकने लगीं।
इतना मैनेज करने में व्यस्तता के कारण 'चाय' की क्वालिटी खराब हो गई अतः ग्राहक कम होते गए।
चाय का काम ठप्प पड़ गया।
अब दुकान पर चाय छोड़कर सब कुछ मिलता है।
विद्यालयों में भी पहले केवल अध्यापन हुआ करता था...
समझ गए ना???